Tuesday 23 December 2014

कैंप-फायर


आग तापी गई है आज..
लम्बी लम्बी लकड़ियाँ जमाई गयी थीं।
एक बौने से कुन्दे को जब गौर से देखा
दो लोगों के नाम लिखे थे।
हाल का ही एक किस्सा होगा
पेड़ों को लम्बी उम्र नसीब कहाँ होती है अब।
सड़कों पे जो छाँव रहती थी
उसे तो टुकड़ा टुकड़ा काट कर लिए जाते हैं सब।

बड़ा ढीट प्रेम रहा होगा
केरासिन की एक नदी बही
तब जलने का काम हुआ।
बहुत गाठें पड़ी थीं रिश्ते में शायद
आवाज़ें कर-कर खुलती जाती हैं।
बीच-बीच में तेज चिंगारी उठती
अंतरिक्ष छू लेने को।
अमर होने की चाह रही होगी प्रेम को उनके
न हुआ अमर , तो मोक्ष सही।

बड़ी आग थी प्रेम में उनके
मुर्दों को भी ताप चुभोकर
थिरकाया है घंटों तक।
उधड़ी-उधड़ी रौशनी भी संग-संग
ऐढी पाँव पटक कर नाच रही है।
बहुत पहले एक अग्नि-संस्कार देखा था मैंने
बेटा बाप की चिता को आग लगाकर
गोल-गोल घूमता था उसके।
बहुत संतानें हैं प्रेम की शायद फिर
दर्जनो-दर्जन प्रेम-चिता के गोल-गोल नाचे जाते हैं।

कल सुबह जब रिश्ते की राख
मिट्टी की चादर ओढ़ के सोया होगा
निकलेंगे जवान
मदहोशी का इत्र चढ़ाकर
रात की आग से तपे-तपाकर।
शिल्पकारी होगी पेड़ों पे नए नामों की
अमर होने का ध्यान किये,
लिपटा रहेगा रिश्ता तने से बिन हलचल।
कट भी गए तो, पेड़ बहुत हैं, नाम बहुत हैं
सुना था प्रेम अमर होता है, अमर ही होगा
मेरा न सही, तुम्हारा न सही...

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