Sunday 30 November 2014

अगर वो पूछ लें हमसे

अगर वो पूछ लें हमसे, कहो किस बात का गम है।
तो फिर किस बात का गम हो, अगर वो पूछ लें हमसे।।

अगर वो पूछ लें हमसे, कहाँ रहते हो शामों में।
तो शामों में कहाँ हम हों, अगर वो पूछ लें हमसे।।

मलाल-ए-इश्क़ इतना है, सवालों की गिरह में हूँ ।
जो तुम पूछो- जवाबें दूँ, जो न पूछो- किसे कह दूँ !

मुनासिब है न मूँह खोलो, न पूछो और न कुछ जानो। 
पर उस निगाह का क्या हो, जिरह करती है जो हमसे।।

गुल-ए-गुलज़ार हो तुम, हर हवा का रुख तुम्ही पर है।
मगर झूमो तो यूँ झूमो, जो टूटो - पास आ जाओ।।

मैं ही बता देता, पर डर है - है किस्सा मोहब्बत का,
कि अंत आगाज़ का जब हो, आगाज़ अंत का न हो।।

9 comments:

  1. A+....btw itna gap nhi hona tha. Keep writing more n more . Goodluck

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  2. मैं ही बता देता, पर डर है - है किस्सा है मोहब्बत का,
    कि अंत आगाज़ का जब हो, आगाज़ अंत का न हो।।
    superb !

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  3. This comment has been removed by the author.

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  4. Mai hi bata deta per kissa hai mohabbt ka ,
    :(

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  5. ये शेर है किसका?????
    कोई बात सकता है

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  6. Mere shayar Galib sahab aapki jitni bhi tarif ki jaye kam hai

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  7. - The first couplet here is by "Faiz" on some accounts though it appears as anonymous on many others. Rest of the lines are written by me (Vivek Shankar) and first originally appear here.

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