वही खिड़की, वही दीवार, वही दर याद आता है,
अकेला जब भी होता हूँ, मुझे घर याद आता है।
सियाह बादल, हवाएँ तेज़, चिंगारी सी बरसातें,
तेरे बिखरे हुए ज़ुल्फ़ों का मंज़र याद आता है।
हो जब तक साथ खुशहाली,किसे फुर्सत कि कुछ सोचे,
जब ठोकर सी लगती है, मुक्कदर याद आता है।
तुझे जब सामने देखूं, तो फिर गुलज़ार हो ये दिल,
तू जब भी दूर होता है, गिला था , याद आता है।
लबों को देखते रहने में ही, खोया रहा हूँ मैं,
अब जाकर तेरी बातों का खंजर याद आता है।
सर पर खड़े होकर, ये सूरज ताकता है जब,
तब ओंस में भींगा दिसंबर याद आता है।
Fantastic compilation..
ReplyDeleteas usual, superb.
ReplyDeletelovely and amazing..
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