अब रंग बदल इस जीवन का,
रंगों में खूब नहाए हो !
कभी लाल हुए गुस्से में तर,
हुए नीले, जीवन-विष पीकर।
कभी कालिक मली है कर्मों की,
हुए श्वेत कभी तुम दुःख जीकर।
जब रंगों में हो युद्ध छिड़ी,
क्या रंग शेष रह जायेगा !
तब श्याम रंग ही छाएगा।
जीवन अंधकार को जायेगा।
अब जाग मूर्ख ! तेरी भोर हुई !
सूरज को रंग बदलता देख।
जीवन की सूक्ष्म सरलता देख।
जब आये वसन्त,तब हरा देख।
गर्मी में जलती धरा देख।
जब बारिश पायल-बाँध झमके,
निर्मल बूंदों को सजा देख।
पतझर भी जो तू देख सका,
पीले धरती की घटा देख।
कृत्रिम रंगों की चमक फेक, .
दुर्बल भावों के ऐनक फेक।
अब जाग मूर्ख ! तेरी भोर हुई !
है शोर बहुत तेरे जीवन में,
है कोलाहल अन्तः मन में।
कभी चिल्लाते अरमान तेरे,
कभी गुर्राते हैं प्राण तेरे।
शहरों के चौड़े सड़कों पर,
सुनते बस शोर दिशाओं में।
रातें भी तेरी मौन नहीं,
है यौवन का भी मान तुम्हें।
जब शोर में यूँ नहाओगे,
निज-धड़कन कैसे सुन पाओगे !
अब जाग मूर्ख ! तेरी भोर हुई !
कभी सुना है तूने कानों से,
सूर्योदय के पहले का सन्नाटा?
वायु का वेग,जल का कलरव,
क्या तेरे कानों तक आता?
क्या कोयल,काक और बुलबुल की
वाणी का है बोध तुझे?
है तू उल्लू, या उल्लू की हूट
तू सुन सकता जब सूर्य बुझे?
कभी आँख मूँद और मौन साध,
सुन प्रकृति के शंखनाद।
अब जाग मूर्ख ! तेरी भोर हुई !
न घर बदल, न दर बदल,
बस आँखों का चादर बदल।
विवश होके ये प्राण न ढो,
हल्का करले अरमानों को।
न घर बदल, न दर बदल,
बस आँखों का चादर बदल।
विवश होके ये प्राण न ढो,
हल्का करले अरमानों को।
मत सोच अधिक
कि पाथ कठिन।
कि पाथ कठिन।
कुछ देर अगर तू चाहे तो
करले बंद दिमाग के कान,
करले बंद दिमाग के कान,
मूंद ले दिल के नयन।
और आँखों से देख!कानों से सुन!
और आँखों से देख!कानों से सुन!
अब जाग मूर्ख ! तेरी भोर हुई !
behatareen..
ReplyDeletelov it... simply awesome...
ReplyDeleteन घर बदल, न दर बदल,
ReplyDeleteबस आँखों का चादर बदल।
_/\_
brilliant !!
ReplyDeletebadhiya!
ReplyDeletebhari hai... bahut vajan hai expression me... wah wah...
ReplyDeletenice
ReplyDeleteLajawab!
ReplyDeletebandhiyan............kash....hmre netas ye baat smjh paate........:P..they shud go thru ths once....!
ReplyDelete