Thursday 9 May 2013

आग



सर्द हवा के आगोश में थी वो रात,
हम एक आग जलाकर बैठे रहे।

मैंने अतीत के पेड़ की कुछ टहनियां झोंकिन उसमें,
तुमने भी गुजरे हुए लम्हों के पत्ते तोड़े।
मैंने तुमपे लिखे गीत खाली किये जेबों से,
तुमने भी हाथों से मुरझाये ख़त सौंप डाले आगों की लपेटों को।

आँखों पे मोहब्बत का जो चस्मा था, नोच फेंका
तुमने भी जला डालीं मेरी लकीरें अपने हाथों से।
जो तारें प्यार की जोडती थीं हमको और तुमको
घींच के फेंका उसे भी, आगों के हवालों में।

रात भर बातों की फूंकों ने लौ को जलाए रखा,
रात भर बुझते रिश्ते को तापा हमने।

फ़िज़ायों में जो गंधें थीं, मोहब्बत की
वो भी जल गयीं हैं अब।
अगर आँखों में पानी हो बचा कुछ
तो अब ये शमा बुझा डालो।

कि जितना भी तुम थूकोगे मोहब्बत  के ज़नाजे पे!
ज़हर जो दौड़ता है तुम्हारी बातों में
जलाता जायेगा नफरत की आगों को
जलाता जायेगा जीवन तुम्हारा।
अगर आँखों में पानी हो बचा कुछ,
तो अब ये शमा बुझा डालो।।

5 comments:

  1. अगर आँखों में पानी हो बचा कुछ,
    तो अब ये शमा बुझा डालो।।
    _/\_
    bahut khoob bhai

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  2. This comment has been removed by the author.

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  3. Very nice.. really cool....

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  4. itna dard kahan se lae ho?? awesome hai...

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